I Want To Talk Review: ऐसा नहीं हैं कि किसी फिल्म के हीरो या हीरोइन को होने वाली लाइफ थ्रेटनिंग यानी उनकी जिंदगी को खतरे में डालने वाली बीमारियों पर पहले कभी फिल्में नहीं बनी हैं. मगर शूजीत सरकार की फिल्म ‘आई वॉन्ट टू टॉक’ उन सबसे काफी अलग है, संवेदनाओं के स्तर पर भी और फिल्म की अनोखी कहानी और उसके किरदारों को बेहद अलग अंदाज में पेश करने के लिहाज से भी. गौरतलब है कि ‘आई वॉन्ट टू टॉक’ जैसी फिल्में बताती हैं कि फिल्में महज दर्शकों को एंटरटेन करने के लिए ही नहीं बल्कि जिंदगी को एक अलग नजर से देखने, उसे समझने और महसूस करने के लिए भी बनाई जाती हैं.
फिल्म ‘आई वॉन्ट टू टॉक’ को देखते हुए आपको शुरुआत में महसूस होगा कि ये फिल्म पर्दे पर अभिषेक बच्चन यानी अर्जुन सेन की जिंदगी को खतरे में डालने वाली बीमारी कैंसर से उनकी जद्दोजहद और आखिर में कैंसर से उनकी जीत पर आधारित फिल्म होगी. मगर डायरेक्टर शूजीत सरकार अपनी फिल्म के जरिए अर्जुन सेन की कैंसर से जंग के साथ साथ उनकी बेटी रेया से उनके तनाव से भरे आपसी रिश्ते को भी गहराई से एक्सप्लोर करने की कोशिश करते हैं जो ‘आई वॉन्ट टू टॉक’ को एक अलग आयाम प्रदान करती है.
‘आई वॉन्ट टू टॉक’ में कैंसर से संघर्ष करते अर्जुन सेन बने अभिषेक बच्चन को जिस अंदाज में पर्दे पर पेश किया गया है, वो बेहद अलग ही नहीं है बल्कि इलाज के दौरान उन्हें होने वाले दर्द और दर्द से उनके रिश्ते का आपके दिलो-दिमाग पर भी गहरा असर होगा. इसी के साथ आपको अर्जुन सेन को परेशान करनेवाली एक दुर्लभ किस्म के कैंसर की बीमारी के बारे में ऐसी ऐसी जानकारियां भी मिलेंगी कि आपको ‘कैंसर’ जैसे लफ्ज से और भी ज्यादा नफरत हो जाएगी.
फिल्म में एक लम्बे समय तक कैंसर के साथ साथ बेटी से भी अपने आपसी रिश्ते को बेहतर बनाने के लिए जूझते शख्स अर्जुन सेन के रूप में अभिषेक बच्चन ने कमाल का अभिनय किया है. एक के बाद सर्जरी कराने के बाद शरीर में होने वाले बदलाव को अपनाने वाले अभिषेक बच्चन का बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन और अलग-अलग फेज में उनके द्वारा की गई एक्टिंग देखने लायक है. अभिनय के मामले में यह अभिषेक बच्चन की उम्दा फिल्मों में से एक है क्योंकि इस तरह के जटिल किरदारों को निभाना किसी भी एक्टर के लिए काफी चैलेंजिंग होता है. फिल्म में अभिषेक बच्चन की कॉलेज गोइंग बेटी के रूप में अहिल्या बमरू ने भी अपने किरदार को बढ़िया ढंग से निभाया है.
शूजीत सरकार ने यह फिल्म अमेरिका में रहने वाले अपने करीबी दोस्त अर्जुन सेन की जिंदगी पर बनाई है जिनकी एक झलक और उनकी जिंदादिली से फिल्म के अंत में रूबरू होने का मौका मिलता है. एक फिल्ममेकर के रूप में शूजीत सरकार ने इस वास्तविक कहानी में काल्पनिकता का भी सहारा लिया है जो कि सिनेमा के लिए एक आम बात है, मगर इस तरह की लिबर्टी नहीं ली है कि वो आपको अनरियल लगे.
ऐसा नहीं है कि कैंसर के जरिए दर्द और रिश्तों को गहराई से टटोलती है शूजीत सरकार की फिल्म ‘आई वॉन्ट टू टॉक’ में खामियां नहीं हैं. मेनस्ट्रीम सिनेमा से एक अलग नजरिया रखते हुए बनाई गई इस फिल्म की कहानी कहीं-कहीं पर बेहद धीमी गति से आगे बढ़ती है, पटकथा की पकड़ भी कुछ जगहों पर ढीली पड़ती नजर आती है. अर्जुन सेन से तलाक लेने वाली उनकी बीवी को पर्दे पर पूरी तरह से नजरअंदाज करना और उन्हें एक बार भी पर्दे पर नहीं दिखाना भी अखरता है. बड़ी हो जाने के बाद भी बेटी रेया का पिता अर्जुन सेन को नहीं समझना भी काफी खलता है. हालांकि बाप-बेटी की गलतफहमियों को जिस तरह से अंत में दूर होते हुए और दोनों को एक-दूसरे को गले लगाते हुए दिखाया गया है वो आपकी आंखों को नम कर देगा.
‘यहां’, ‘विक्की डोनर’, ‘पीकू’, ‘ऑक्टोबर’, ‘उधम’, ‘गुलाबो सिताबो’ जैसी फिल्में बना चुके शूजीत सरकार एक ऐसे फिल्ममेकर हैं जो रिश्तों के ताने-बाने को वास्तविकता के धरातल पर लाकर उसे बड़े पर्दे पर गहराई और खूबसूरती के साथ पेश करना जानते हैं. ‘आई वॉन्ट टू टॉक’ उनकी ऐसी ही संवेदनशील पेशकश है जिसे एक अलग नजरिए से देखने की जरूरत है. फिल्म देखते वक्त मन में आने वाले कुछ सवालों और फिल्म की कुछ खामियों के बावजूद ये फिल्म बहुत हद तक दिल को छूने में कामयाब साबित होती है.
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