अलग ही था कुंबले का करिश्मा, गेंद को घुमाए बिना बड़े-बड़े बल्लेबाज़ों को दिया चकमा

Prathamesh
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अलग ही था कुंबले का करिश्मा, गेंद को घुमाए बिना बड़े-बड़े बल्लेबाज़ों को दिया चकमा

अनिल कुंबले यूं ही नहीं बने महान गेंदबाज (PC-GETTY IMAGES)

ये सोचकर भी ताज्जुब होता है कि जिस गेंदबाज की गेंद में बहुत मामूली ‘टर्न’ था, उसके खाते में 619 टेस्ट विकेट हैं. वो भारत के सबसे कामयाब गेंदबाज हैं. ये बात भारतीय टीम के दिग्गज कप्तान सौरव गांगुली कहा करते थे. कुंबले टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाजों की फेहरिस्त में चौथे नंबर के गेंदबाज हैं. उनकी कामयाबियां इतनी हैं कि एक पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है. वो एक अलग शख्सियत हैं. अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर कहा जाए कि उनके चेहरे से शराफत टपकती है. वो अलग ही मिट्टी के बने खिलाड़ी हैं. उनके जन्मदिन पर हम उनके ‘वर्क-एथिक्स’ पर ज्यादा बात करेंगे. लेकिन मैदान में उनकी अहमियत को समझने के लिए सिर्फ कुछ पुरानी तस्वीरों को याद कीजिए. 1999 का कोटला टेस्ट याद कीजिए जब उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ पारी के सभी 10 विकेट चटकाए थे. साल 2002 का एंटीगा टेस्ट याद कीजिए, जब टूटे हुए जबड़े से उन्होंने गेंदबाजी की थी.

अनिल कुंबले के लिए बजी थी तालियां

2008 का सिडनी टेस्ट याद कीजिए, जिसमें मैच हारने के बाद भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अनिल कुंबले के लिए तालियां बजी थीं. ये वही टेस्ट मैच है जिसमें मंकीगेट एपीसोड हुआ था. मैच हारने के बाद जब कुंबले जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में आए तो उन्होंने कहा था- आई थिंक ओनली वन टीम हैज प्लेड इन द राइड स्पिरिट ऑफ द गेम यानी मेरे ख्याल से सिर्फ एक टीम थी जिसने खेल की गरिमा को ध्यान में रखकर खेला. कुंबले के इस बयान पर भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में ताली बजी थी. वैसे ये सिर्फ कुछ किस्से, कुछ तस्वीरें हैं, वरना कामयाबियों और रिकॉर्ड बुक में गए तो अनिल कुंबले के नाम का मतलब बहुत बड़ा होता है.

ये कहना कहीं से भी गलत नहीं होगा कि उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में भारत को सबसे ज्यादा जीत दिलाई है. खुद कप्तानी करने से पहले वो जिनकी जिनकी कप्तानी में खेले वो भाग्यशाली कप्तान रहा. उसकी कप्तानी के रिकॉर्ड बेहतर रहे. लेकिन मैदान से अलग भी उनकी ‘वर्क-एथिक्स’ की चमक अलग ही है. कोच के तौर पर जब वो टीम इंडिया के साथ जुड़े और फिर जब उन्होंने इस जिम्मेदारी को छोड़ा, दोनों ही परिस्थिति में अगर उनका बर्ताव याद करेंगे तो बातें और साफ हो जाएंगी.

जब कुंबले बने टीम इंडिया के कप्तान

ये कुंबले की वर्क-एथिक्स ही थी कि वो भारत के कोच बनाए गए थे. याद कीजिए बीसीसीआई ने कोच चुनने के लिए जो पहली बड़ी शर्त रखी थी, कुंबले उसी शर्त को पूरा नहीं करते थे. वो शर्त थी कि प्रत्याशी को कोचिंग का अनुभव होना चाहिए. उस वक्त तक कुंबले ने किसी भी बड़ी टीम को कोचिंग नहीं दी थी, लेकिन जब उन्होंने आवेदन किया तो वो चुन भी लिए गए. उन्हें चुनने वाली कमेटी में सचिन तेंडुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएल लक्ष्मण शामिल थे. इस कमेटी ने रवि शास्त्री की मजबूत दावेदारी को नकार करके कुंबले को जिम्मेदारी सौंपी थी. जिसकी वजह से कुछ लोगों ने नाराजगी भी दिखाई थी. तब ये सवाल भी उठे थे कि रवि शास्त्री ने ऐसा क्या गलत किया कि उन्हें हटाया गया. वो भी तब जबकि रवि शास्त्री उस वक्त टेस्ट टीम के कप्तान और भारतीय क्रिकेट के सबसे मजबूत नाम विराट कोहली की पहली पसंद थे.

अनिल कुंबले की कंपनी में वीवीएस लक्ष्मण की साझेदारी की खबरें भी आईं. यहां तक कि रवि शास्त्री और सौरव गांगुली के बीच खुलकर बयानबाजी हुई. क्रिकेट की चटपटी खबरों में दिलचस्पी रखने वालों ने कहाकि सौरव गांगुली ने रवि शास्त्री से पुराना बदला लिया और कुछ ने कहाकि ऐसा इसलिए किया गया जिससे विराट कोहली और रवि शास्त्री मिलकर पूरी टीम पर एकछत्र राज ना करने लगें. लेकिन इस पूरी कवायद में अनिल कुंबले को उनके काम काज के स्पष्ट तरीके की वजह से कोच बना दिया गया.

‘वर्क एथिक्स’ की वजह से छोड़नी भी पड़ी जिम्मेदारी

हालांकि कोच के तौर पर अनिल कुंबले का कार्यकाल छोटा ही रहा. उन्होंने जब कोच की कुर्सी को छोड़ा तो जो चिट्ठी लिखी उसे याद कीजिए. अंग्रेजी में लिखी गई उस चिट्ठी का हिंदी अनुवाद कुछ इस तरह था- मैं क्रिकेट संचालन समिति की तरफ से मुख्य कोच की जिम्मेदारी पर बने रहने के प्रस्ताव से सम्मानित महसूस कर रहा हूं. पिछले एक साल की कामयाबी का श्रेय कप्तान, पूरी टीम, कोचिंग और सपोर्ट स्टाफ को जाता है. हाल ही में मुझे पहली बार बीसीसीआई की तरफ से सूचित किया गया कि कप्तान को मेरी कोचिंग के तरीकों और मुख्य कोच पर बने रहने को लेकर संदेह है. मेरे लिए ये हैरानी वाली बात है क्योंकि मैंने कोच और कप्तान के बीच की सीमाओं का हमेशा ध्यान रखा है. बीसीसीआई ने मेरे और कप्तान के बीच गलतफहमी को दूर करने की कोशिश भी की लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर ये समझ आ रहा है कि ये साझेदारी अब अस्थिर ही रहेगी. लिहाजा मैंने ये जिम्मेदारी छोड़ने का फैसला किया है.

इस चिट्ठी को अच्छी तरह समझने की जरूरत है क्योंकि अनिल कुंबले सिर्फ कोच बन रहने के लिए भारतीय टीम के साथ नहीं जुड़े थे. इस बात से कोई इंकार नहीं करेगा कि बतौर कोच वो शायद ही कभी उतना नाम कमा पाते जितना उन्होंने बतौर खिलाड़ी कमाया था. वो टीम इंडिया के साथ इसलिए जुड़े थे क्योंकि उनके पास भारतीय खिलाड़ियों को देने के लिए बहुत कुछ था. वो आईपीएल की फटाफट पीढ़ी में जन्में खिलाड़ियों में टेस्ट क्रिकेट का संयम डालने की सोच रखते थे. हालांकि ऐसा हो नहीं पाया.

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